Kendriya Vidyalaya CBSE New Rule: देश की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने 2025-26 सत्र से केंद्रीय विद्यालयों में पढ़ाई के तरीके को बदलने का फैसला लिया है। यह नया नियम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा (NCF) 2023 के अनुसार लागू किया जाएगा। इस बदलाव का उद्देश्य बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा को अधिक सरल, प्रभावशाली और रचनात्मक बनाना है।
🧒🏻 प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक नई शिक्षा पद्धति
CBSE ने फैसला किया है कि अब प्री-प्राइमरी से लेकर कक्षा 2 तक की पढ़ाई मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में कराई जाएगी। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि छोटे बच्चों को पढ़ाई में कठिनाई महसूस न हो और वे बेहतर तरीके से सीख सकें।
CBSE का मानना है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में जल्दी सीखते हैं, चीजों को अच्छे से समझते हैं और आत्मविश्वास से भर जाते हैं। इसीलिए अब शिक्षा की शुरुआत उनकी मातृभाषा से ही की जाएगी।
📢 सीबीएसई ने जारी किया सर्कुलर
CBSE ने 22 मई 2025 को एक सर्कुलर जारी कर यह स्पष्ट कर दिया है कि अब मातृभाषा या परिचित क्षेत्रीय भाषा को पढ़ाई का मुख्य माध्यम बनाया जाएगा। यदि किसी जगह पर मातृभाषा को लागू करना संभव नहीं हो, तो वहां की राज्य भाषा को प्राथमिकता दी जाएगी।
साथ ही यह भी कहा गया है कि कक्षा 3 से 5 तक कम से कम एक भारतीय भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाना अनिवार्य होगा। यह कदम बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है।
🏫 केंद्रीय विद्यालयों की तैयारी
केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) इस बदलाव को लागू करने के लिए पूरी रणनीति बना रहा है। देशभर के केंद्रीय विद्यालयों में विभिन्न भाषाओं के छात्र पढ़ते हैं, इसलिए CBSE इन विद्यालयों में मातृभाषा के आधार पर कक्षाओं का विभाजन करने की योजना बना रहा है।
इस प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण देने की भी योजना बनाई जा रही है। इसके अलावा, अभिभावकों को भी इस बदलाव के बारे में जागरूक किया जा रहा है ताकि वे इसे सहज रूप से स्वीकार करें।
🌟 मातृभाषा आधारित शिक्षा के फायदे
CBSE के इस नए नियम के पीछे एक मजबूत कारण है – बच्चों का समग्र विकास। जब बच्चों को उनकी जानी-पहचानी भाषा में पढ़ाया जाता है, तो वे:
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जल्दी समझते हैं
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आत्मविश्वासी बनते हैं
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सवाल पूछने से नहीं डरते
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संस्कार और संस्कृति से जुड़े रहते हैं
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स्कूल में रुचि और उपस्थिति दोनों बढ़ती है
इसके अलावा, यह कदम ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने में भी मदद करेगा। वहां के बच्चे जो हिंदी या अन्य स्थानीय भाषा में सहज होते हैं, उनके लिए अब शिक्षा और भी सुलभ हो जाएगी।
🤔 माता-पिता की चिंताएं भी होंगी
जहां एक ओर यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव है, वहीं कुछ अभिभावक अंग्रेजी माध्यम को ही प्राथमिकता देते हैं। उन्हें चिंता हो सकती है कि मातृभाषा में पढ़ाई से बच्चों का भविष्य प्रभावित होगा, खासकर कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स में।
CBSE इन चिंताओं को दूर करने के लिए अभिभावकों को समझाने और धीरे-धीरे बदलाव लागू करने की योजना बना रहा है। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि बच्चों को आगे चलकर अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में भी अच्छी पकड़ हो।
📘 क्या कहते हैं शिक्षा विशेषज्ञ?
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय बच्चों के बौद्धिक और भावनात्मक विकास के लिए एक मजबूत नींव रखेगा। छोटे बच्चों को शुरुआत में अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में पढ़ाना कई बार उनके लिए बोझ बन जाता है, जिससे वे पढ़ाई से दूर होने लगते हैं।
मातृभाषा में शिक्षा उन्हें सीखने का आनंद देती है और वे पढ़ाई को बोझ नहीं समझते। यह नीति NEP 2020 के उद्देश्य को भी पूरा करती है, जिसमें मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।
📌 निष्कर्ष
CBSE का यह नया नियम शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाई करने का मौका मिलेगा, जिससे वे बेहतर तरीके से सीख सकेंगे और शिक्षा के प्रति उनका जुड़ाव बढ़ेगा।
हालांकि इसे लागू करने में चुनौतियां भी होंगी, लेकिन अगर सरकार, स्कूल और माता-पिता मिलकर सहयोग करें तो यह नीति देश के शिक्षा भविष्य को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है।